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सोमवार, 22 जून 2009
आज का सद़विचार
जिस प्रकार काठ अपने ही भीतर से प्रकट
हुई अग्नि से भस्म होकर खत्म हो जाता है,
उसी प्रकार मनुष्य अपने ही भीतर रहने वाली
तृष्णा से नष्ट हो जाता है ।
- बाणभट्ट
1 टिप्पणी:
निर्मला कपिला
23 जून 2009 को 3:10 pm बजे
बहुत सुन्दर आभार्
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