जिन्दगी छल है
प्रकृति निश्छल है
हम छल से भी लेते हैं और सीखते हैं
निश्छल से भी लेते हैं और सीखते हैं ...
फिर हम प्रयोगवादी आदर्शवादी बन जाते हैं !
हम लेते हुए काट-छांट करने लगते हैं
छल से देना स्वीकार नहीं होता
कृत्रिम निश्छलता से बस अपने फायदे का लेखा-जोखा करते हैं
और समाज सुधारक, विचारक बन जाते हैं !
- रश्मि प्रभा
प्रकृति निश्छल है
हम छल से भी लेते हैं और सीखते हैं
निश्छल से भी लेते हैं और सीखते हैं ...
फिर हम प्रयोगवादी आदर्शवादी बन जाते हैं !
हम लेते हुए काट-छांट करने लगते हैं
छल से देना स्वीकार नहीं होता
कृत्रिम निश्छलता से बस अपने फायदे का लेखा-जोखा करते हैं
और समाज सुधारक, विचारक बन जाते हैं !
- रश्मि प्रभा
सही कहा है, सुधारक और संत का यही अंतर है, जो भीतर तृप्त हो गया उसे देना नहीं पड़ता सहज ही उनसे ऊर्जा का विसर्जन होता है..संतजन ऐसे ही होते हैं
जवाब देंहटाएंआज के साथ आगे -पीछे के समय का भी सद्विचार
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !!
निश्चित ही!!
जवाब देंहटाएंसही कहा है,...
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