Click here for Myspace Layouts

फ़ॉलोअर

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

आज का सदविचार '' प्रकृति निश्‍छल ''

जिन्‍दगी छल है 
प्रकृति निश्‍छल है 
हम छल से भी लेते हैं और सीखते हैं 
निश्‍छल से भी लेते हैं और सीखते हैं ... 
फिर हम प्रयोगवादी आदर्शवादी बन जाते हैं !
हम लेते हुए काट-छांट करने लगते हैं 
छल से देना स्‍वीकार नहीं होता 
कृत्रिम निश्‍छलता से बस अपने फायदे का लेखा-जोखा करते हैं 
और समाज सुधारक, विचारक बन जाते हैं !


- रश्मि प्रभा 

4 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा है, सुधारक और संत का यही अंतर है, जो भीतर तृप्त हो गया उसे देना नहीं पड़ता सहज ही उनसे ऊर्जा का विसर्जन होता है..संतजन ऐसे ही होते हैं

    जवाब देंहटाएं
  2. आज के साथ आगे -पीछे के समय का भी सद्विचार
    शुभकामनायें !!

    जवाब देंहटाएं

यह सद़विचार आपको कैसा लगा अपने विचारों से जरूर अवगत करायें आभार के साथ 'सदा'