बिलकुल सही ..... जहां तर्कों की ज़रूरत आ जाए वहाँ प्रेम नहीं ।
बहुत सुंदर और सच्ची बात...अहंकार और प्रेम...दोनों विरोधी हैं..जब एक होता है तो दूसरा नहीं होता..
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बिलकुल सही ..... जहां तर्कों की ज़रूरत आ जाए वहाँ प्रेम नहीं ।
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