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शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

आज का सद़विचार 'इच्‍छा रूपी समुद्र'

इच्‍छा रूपी समुद्र सदा अतृप्‍त रहता है
उसकी मांगे ज्‍यों-ज्‍यों पूरी की जाती हैं,
त्‍यों-त्‍यों और गर्जन करता है ।

- स्‍वामी विवेकानन्‍द

1 टिप्पणी:

  1. सत्य! पर इच्छा न हो तो जीवन रुक जाये. धार्मिक कथाओं में भी प्रभु जब प्रसन्न होटल हैं तो कहते हैं, बतओ वत्स तुम्हारी इच्छा क्या है?

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