सोच नेपथ्य में रह जाता है ,धीरे धीरे खो जाता है ,केवल भ्रम रह जाता है
भौतिक सुख,अपने से ज्यादा" लोग क्या कहेंगे "की चिंता प्रमुख हो जाते हैं
आदमी स्वयं, स्वयं नहीं रहता कठपुतली की तरह नाचता रहता ,जो करना चाहता,
कभी नहीं कर पाता, जो नहीं करना चाहता ,उसमें उलझा रहता ,जितना दूर भागता
उतना ही फंसता जाता ....।
- राजेंद्र तेला
आज का सद़विचार ब्लॉग जगत से ..... राजेंद्र तेला जी का
आज का सद़विचार ब्लॉग जगत से ..... राजेंद्र तेला जी का
very well said .
जवाब देंहटाएंमोह-माया का आवरण!!
जवाब देंहटाएंसही कहा है, हर समस्या की जड़ में अज्ञान है !
जवाब देंहटाएंबहुत सच कहा है..
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सच कहा है आपने ।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सच.
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